लाखामंडल, देहरादून से 126 किमी. दूरी पर यमुना के किनारे स्थित है ।

इस स्थान का पुराना नाम मढ़ था ।

किवंदन्ति है कि असंख्य मंदिरों के कारण यह लाखामंडल कहलाया ।

लाखामंडल से उत्तराखंड का इतिहास जानने मे सहायक अनेक एतिहासिक एवं पुरातात्विक सामाग्री प्राप्त हुई है ।

यहाँ से 6वीं-7वीं सदी के ध्वस्त मंदिर, टूटी-फूटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं ।

लाखेश्वर या लाखामंडल में छत्र युक्त (पैगोड़ा सदृश) मंदिर स्थापित है ।

यह छत्र काष्ठ निर्मित है । यहाँ से गुप्तकाल से पूर्व की मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं ।

यहाँ से प्राप्त मूर्तियाँ पार्वती, उमा-महेश्वर, परशुराम, शिव, कुवेर इत्यादि देवताओं से संबन्धित है ।

यहाँ से दो विशाल मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं ।

जिन्हे अर्जुन, भीम या जय-विजय भी कहा जाता है ।

यहाँ से ब्राह्मी लिपि में श्लोकबद्ध संस्कृत लेख भी प्राप्त हुआ है । यह उत्तराखंड के मूर्तिकला के केन्द्रो में से है ।

मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहां दुर्योधन ने लाक्षागृह बनाकर पांडवों को जिंदा जलाने का षड्यंत्र किया था ।

यही लाक्षागृह बाद मे लाखामंडल कहलाया ।

यहाँ उत्तराखंड शैली का एक सुंदर मंदिर है ।

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