इनका वास्तविक नाम “कुंवर सिंह बर्त्वाल” था ।
उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हज़ार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया था ।
मृत्यु पर आत्मीय ढंग से और विस्तार से लिखने वाले चंद्रकुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि हैं ।
कालिदास को अपना गुरु मानने वाले चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने पोखरी और अगस्तमुनि में अध्यापन भी किया था ।
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को प्रकृति प्रेमी कवि माना जाता है ।
उनकी कविताओं में हिमालय, झरनों, नदियों, फूलों, खेतों, बसन्त का वर्णन तो है ही उपनिवेशवाद का विरोध भी दिखता है ।
कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल प्रमुख कृतियों में विराट ज्योति, कंकड़-पत्थर, पयस्विनी, काफल पाक्कू, जीतू, मेघ नंदिनी हैं ।
इनके काफल पाको गीति काव्य को हिन्दी के श्रेष्ठ गीति के रुप में “प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ” में स्थान दिया गया।
युवावस्था में ही वह तपेदिक यानी टीबी के शिकार बन गए थे और इसके चलते उन्हें पांवलिया के जंगल में बने घर में एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा था ।
मृत्यु के सामने खड़े कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने अपनी सर्वश्रेष्ठ कविताओं को लिखा ।
14 सितम्बर, 1947 को हिन्दी साहित्य को बेहद समृद्ध खजाना देकर यह युवा कवि दुनिया को अलविदा कह गया ।
