पिता तारादत्त ज्योतिषी
मा जमुना देवीडा० सतीश जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के निकट ही कांडई, घिमतोली,एव तत्पश्चात जगाधरी, सहारनपुर एंव उच्च शिक्षा देहरादून, दिल्ली, आगरा विश्वविधालयों में संपन्न हुई ।
अध्ययन के दौरान ही ये स्टेट विश्वविद्यालय , अलबानी (न्यूयॉर्क) द्वारा संचालित शिक्षा स्रोत केंद्र में अनुसंधान अधिकारी नियुक्त हो गए ।
हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार के निमित्त भारत सरकार ने शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत विदेशियों को हिन्दी प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए हिन्दी शिक्षार्थीयों के लिए छात्रवृति योजना की थी| छात्रों में मंगोलिया, चीन, रूस, पोलैंड, कोरिया, पेरू जापान, नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, चिली, गुयाना, सूरीनाम, मारीशस, फिजी, श्रीलंका आदि अनेक देशों से हिन्दी शिक्षार्थी आते थे |
सतीश साहब सरकार के अधिकारियों को राजभाषा तथा विदेशियों को भाषा -साहित्य -संस्कृति दोनो पाठ्यक्रम पढ़ाते थे |
सन 1973 से 1983 तक संस्थान मे प्राध्यपक रहे |
दो वर्ष सूरीनाम में प्रतिनियुक्ति पर भी रहे |
चाटुकरों को प्रोन्नति देने पर देश की राष्ट्रीय नीति से जुड़ी परियोजना से सतीश जी ने त्यागपत्र दे दिया |
सूरीनाम में रहते हुए डाक्टर साहब ने तीन निबंध तैयार किए थे |
1- भारत से बाहर एक और भारत-सूरीनाम
2- केरेबियन देशों में हिन्दी तथा तीसरा सूरीनाम में हिन्दी तथा भारतीय संस्कृति |
गढ़गीतिका काव्य पुरस्तिका में सतीश साहब को स्वर्णपदक और प्रशशित पत्र प्राप्त हुआ था |यह 1956 की दौरान की बात है |
गढ़वाली फोनेटिक्स पर उन्होंने महत्वपूर्ण शोध किया है ।
अंग्रेजी में इन्होंने “ए लिग्विस्टिक्स” स्टडी ऑफ जौनसारी पुस्तक लिखी है ।
हिन्दी सेवा में लेखन करते हुए 17 दिसम्बर, 2011 को शरीर छोड़ गये |
