हिमांशु जोशी का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले के ‘जोसयूड़ा‘ गांव में 4 मई 1935 में हुआ था।
उनके बचपन का लंबा समय ‘खेतीखान’ गांव में बीता जहां से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की।
इसके बाद 1948 में वो नैनीताल चले आए जहां से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
उनके पिता ‘पूर्णानन्द जोशी‘ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका संघर्ष जोशी के लिए प्रेरणा बना, जिसका असर उनके लेखन पर भी पड़ा।
ख्याति प्राप्त साहित्यकार एवं पत्रकार श्री जोशी की उपन्यास , कहानी , कविता , संस्मरण , यात्रा विक्रांत , नाटक और बाल साहित्य पर अब तक लगभग 37 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है ।
“छाया मत छूना मन” , ‘अरण्य’, ‘मनुष्य चिह्न’ ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियां’ तथा ‘गन्धर्व कथा’ को ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ से पुरस्कार ।
‘हिमांशु जोशी की कहानियां’ तथा ‘भारत रत्न : पं. गोविन्द बल्लभ पन्त’ को ‘हिंदी अकादमी’ दिल्ली का सम्मान ।
‘तीन तारे’ राजभाषा विभाग बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत ।
पत्रकारिता के लिए ‘केंद्रीय हिंदी संसथान’ (मानव संसाधन मंत्रालय) द्वारा ‘स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ से सम्मानित ।
उन्होने लगभग 29 वर्ष तक “साप्ताहिक हिंदुस्तान” पत्र का संपादन किया ।
पत्रकारिता के लिए यह गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित है ।
23 नवम्बर 2018 को देहावसान से कुछ समय पूर्व तक वे नार्वे से प्रकाशित पत्रिका ‘शांतिदूत’ के सलाहकार संपादक रहे।
