नैनीताल के मुक्तेश्वर नामक स्थान पर स्थित इस प्रयोगशाला को भारत में पशु चिकित्सा विज्ञान का मक्का कहा जाता है ।

सर्वप्रथम डॉ एल्फ्रेड लिंगार्ड के प्रयासों से 1893 में इसे

इंपीरियल वैक्टीरिओलॉजिकल लैबोरेटरी के नाम से स्थापित किया गया था ।

1925 में इसका नाम इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ वेटरनरी रिसर्च और स्वतन्त्रता के बाद वर्तमान नाम रखा गया ।

इस संस्था के शुरुआती दिनों में डॉ लिंगार्ड ने घोड़ों तथा गौ पशुओं में होने वाले “सर्रा रोग” पर शोध किया ।

19वीं शती के अंतिम वर्षों तक यहाँ रिंडरपेस्ट, एंथरेक्स, सीरम, लिंफ़ेजाइटिस इपीजूटिक और

ग्लैंडर्स रोगों पर उत्कृष्ट खोजें हुई ।

1924 में डॉ एडवडर्स ने रिंडरपेस्ट नामक रोग का टीका खोजा । यह इस संस्थान की अनूठी देन है ।

इसी सेंटर ने मुर्गियों के रानीखेत नामक रोग के टीके का आविष्कार किया था,

जिसके बिना मुर्गी पालन व्यवसाय संभव नहीं था ।

आईसीएआर के तहत काम करने वाले इस संस्थान ने 2000 में बकरी और भेड़ों को पॉक्स से बचाने के लिए

पीपीआर वैक्सीन विकसित की थी।

यह शोध उत्तराखंड के साथ-साथ कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल सरकार के लिए मददगार रहा है।

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