लाखु उड्यार
1968 में लाखु उड्यार (Cave) की खोज अल्मोड़ा के बाड़ेछीना के
पास सुयाल नदी के तट पर M . P जोशी ने की , यहाँ मानव और पशुओं के चित्र प्राप्त हुए हैं, चित्रों को रंगों से भी सजाया गया हैं।
लखु-उड्यार की खोज के बाद सुयाल नदी के ऊपरी क्षेत्रों कसारदेवी, पेटशाल, फड़कानौली, फलसीमा, ल्वेथाप और पश्चिमी रामगंगा घाटी में महरू-उड्यार में भी चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुये.
इनकी खोज महेश्वर प्रसाद जोशी (M.P Joshi ) ने 1963 में की थी
ग्वारख्या गुफा
चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के पास स्थित इस उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं।
किमनी गाँव
चमोली के पास थराली के पास स्थित इस गाँव के गुफ़ाओं में सफ़ेद रंग से चित्रित हथियार व पशुओं के चित्र मिले हैं।
मलारी गाँव
चमोली में तिब्बत से सटे मलारी गाँव में 2002 में हजारों साल पुराने नर कंकाल (Skeletons), मिट्टी के बर्तन (Clay Pots), जानवरों के अंग (Animal Organ) और 5.2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Mask) मिला। गढ़वाल विश्वविद्यालय के द्वारा सन् 2002 में मलारी गाँव के प्रागैतिहसिक पुरातत्वस्थल (Archeology) की खुदाई कराई गई।
ल्वेथाप
अल्मोड़ा के ल्वेथाप से प्राप्त चित्र में मानव को शिकार करते तथा नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।
हुडली
उत्तरकाशी के हुडली से प्राप्त शैल चित्रों में नील रंग का प्रयोग किया गया हैं।
पेटशाला
अल्मोड़ा के पेटशाला व पुनाकोट गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट से प्राप्त चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
फलसीमा
अल्मोड़ा के फलसीमा से प्राप्त मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।
बनकोट
पिथौरागढ़ के बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं।
यमुना घाटी में कालसी के पास, अलकनंदा घाटी में डांग और स्वीत, अल्मोड़ा जनपद में पश्चिमी रामगंगा घाटी और नैनीताल में खुटानी नाला से पाषाणकालीन उपकरण प्राप्त हुये हैं. इनमें पूरा पाषाण से नव पाषण काल तक प्रयोग में लाये जाने वाले उपकरण’ जैसे हथ-कुठार, क्षुर, खुरचनी, छिद्रक, चीरक, छेनी, अनी आदि मिले हैं. इसके अलावा उत्तरकाशी जनपद में डरख्याटी गाँव के टटाऊँ महादेव और चमोली में भेत एवं ह्यूण गाँवों से भी क्रमशः अंडाकार और चपटे प्रस्तर उपकरण मिले हैं जिनकी प्रमाणिकता अभी तक सिध्द नहीं हुई है.
