मसूरी | Mussoorie
मसूरी की स्थापना सन 1823 में एक अंग्रेज़ द्वारा कैमल्स बैक पर एक छोटी-सी झोपड़ी बनाने से की गई थी । समुद्र तल से औसतन 1880 मीटर की ऊंचाई पर
मसूरी की स्थापना सन 1823 में एक अंग्रेज़ द्वारा कैमल्स बैक पर एक छोटी-सी झोपड़ी बनाने से की गई थी । समुद्र तल से औसतन 1880 मीटर की ऊंचाई पर
कटारमल अल्मोड़ा नगर से 12 किमी दूरी पर स्थित है । यहाँ 11वीं – 12वीं सदी का सूर्य मंदिर निर्मित है । इस मंदिर को बड़ादित्य मंदिर के नाम से भी
रुड़की का विकास सन 1850 में हुआ, जब यहाँ से उत्तरी भारत में सिंचाई के लिए ब्रिटिश शासकों ने गंगनहर निर्माण की अति महत्वपूर्ण योजना आरंभ की । इस नहर
लाखामंडल, देहरादून से 126 किमी. दूरी पर यमुना के किनारे स्थित है । इस स्थान का पुराना नाम मढ़ था । किवंदन्ति है कि असंख्य मंदिरों के कारण यह लाखामंडल
कालसी उत्तराखंड में देहरादून जनपद के चकराता के पास स्थित अति महत्वपूर्ण एतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल है । यहाँ से प्राप्त शिलालेख एवं अन्य पुरातात्विक सामग्री का न केवल उत्तराखंड
समुद्रतल से 2048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान का सर्वप्रथम विवरण सन 1839 से मिलता है ।उस वर्ष सबसे पहले अंग्रेज़ व्यापारी पीटर बैरन पहुंचा था । उसके
हल्द्वानी उत्तराखंड का सबसे बड़ा व्यापारिक नगर है । 15वीं शताब्दी से पहले आज का हल्द्वानी हल्दु पेड़ों के अलावा बेर, शीशम, कंजू, तुन, खैर, बेल तथा लैटाना जैंसी झाड़ियों
ब्रिटिश शासनकाल में दुगड्डा सयुंक्त गढ़वाल (अब पौड़ी, चमोली व रुद्रप्रयाग) का एक प्रमुख व्यापारिक और राजनीतिक केंद्र था । पंडित धनिराम मिश्र ने दुगड्डा नगर को 19वीं शताब्दी के
उत्तराखण्ड की महत्त्वपूर्ण पुस्तके पुस्तक का नाम लेखक हिमालयन डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स एटकिन्सन, 1882 मेम्वायर्स ऑफ देहरादून जी. आर. सी. विलियम्स, 1874 होली हिमालय इ. सेरमन ओकले, 1905 गढ़वाल गजेटियर्स एच.
आचार्य गोपेश्वर कोठियाल का जन्म टिहरी के उदखंडा गांव में फरवरी 1909 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए काशी गए।