उनके पिता कृष्णदत्त डबराल प्राइमरी विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे ।
माता भानुमती डबराल गृहणी.
शिवप्रसाद डबराल ने प्राइमरी शिक्षा मांडई व गढ़सिर के प्राइमरी स्कूल से की और मिडिल की परीक्षा वर्नाक्युलर एंग्लो मिडिल स्कूल सिलोगी (गुमखाल) से पास की.
शिवप्रसाद डबराल ने मेरठ से बीए और इलाहाबाद से बीएड किया. एम.ए उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से किया.
1962 में उन्होंने पीएचडी पूरी कर शिवप्रसाद डबराल डॉ शिवप्रसाद डबराल हो गये.
शिवप्रसाद डबराल ने डी.ए.बी. कॉलेज दुगड्डा में सन 1948 में प्रधानाचार्य की नौकरी की जहाँ वे 1975 में सेवानिवृत होने तक प्रधानाचार्य के पद पर रहे ।
उनकी लेखन यात्रा 1931 से ही शुरु हो गयी थी ।
भूगोल में m.a. व पीएचडी करने वाले डॉक्टर डबराल इतिहास के अलावा अंग्रेजी एवं बांग्ला में कई रचनाएं प्रस्तुत की ।
उनके द्वारा लिखित वा संपादित कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है –
श्री उत्तराखंड यात्रा दर्शन , उत्तराखंड का इतिहास (12 भागों में ) , उत्तरांचल के अभिलेख एवं मुद्रा , गुहादित्य , गोरा बादल , महाराणा संग्राम सिंह , पत्राधाय , सदीई , सतीरमा , राष्ट्र रक्षा काव्य , गढ़वाली मेघदूत , हुतात्मा परिचय , अतीत स्मृति , संघर्ष संगीत आदि ।
उन्होंने प्रेस भी खोली थी और वीरगाथा प्रकाशन के नाम से पुस्तके प्रकाशित की ।
घुमक्कडी के शौक के चलते उनके नाम के अंत में “चारण” शब्द जोड़ दिया गया था ।
उन्हें इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड के नाम से भी जाना जाता है ।
वे दुपट्टा इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य थे । उन्होंने अपने ( सरूड़ा ) दुगड्डा स्थित घर पर “उत्तराखंड विद्या भवन” नाम से पुस्तकालय एवं संग्रहालय खोलकर करीब 3000 पुस्तकें , दुर्लभ पांडुलिपियों , पुरातत्वीय महत्व के सिक्कों एवं बर्तनों आदि का संग्रह किया था ।
उनका परिवार उत्तरांचल का एक ऐसा अनोखा परिवार है जिसके “6 सदस्य साहित्यिक डॉक्टर” है ।
24 नवम्बर 1999 को स्वयं की पूर्व ज्योतिष गणना के अनुसार वे महाप्रयाण कर गए ।
