गिरीश तिवारी “गिर्दा” का जन्म 10 सितंबर , 1945 को अल्मोड़ा के ज्योली ग्राम में हुआ था ।

पिता – श्री हंसा दत्त तिवारी

माता – श्रीमती जीवंती देवी

अपनी प्रारंभिक शिक्षा हवालबाग और अल्मोड़ा में पूरी करने के बाद गिर्दा का मन सांस्कृतिक गतिविधियों की ओर रम गया।

उनकी प्रतिभा को सवारने में अल्मोड़ा के लोक कलाकार संघ का योगदान काफी रहा ।

गिर्दा अपने बचपन के दिनों में अक्सर अल्मोड़ा शहर अपने चाचा बद्री दत्त तिवारी के पास आया जाया करते थे ।

इसके बाद गिर्दा ने लखनऊ में लोक निर्माण विभाग और बिजली विभाग में नौकरी की ।

स्थाई नौकरी उन्होंने 1967 में गीत और नाटक प्रभाग में शुरू की यहीं से उनका लखनऊ के आकाशवाणी केंद्र में भी आना जाना शुरू हुआ ।

आकाशवाणी के कार्यक्रमों के बहाने गिर्दा की मुलाकात शेरदा अनपढ़ , केशव अनुरागी , घनश्याम सैलानी , उर्मिल कुमार थपलियाल जैन से दूसरे  युवा रचनाधर्मियों से हुई ।

केशव अनुरागी का गिर्दा को विशेष स्नेह और प्यार मिला । केशव अनुरागी के “ढोल सागर” ने उन्हें विशेष तौर पर प्रभावित किया ।

उन्होने दुर्गेश  पंत के साथ मिलकर कुमाऊनी कविताओं का संग्रह “शिखरों के स्वर” 1968 में प्रकाशित किया ।
जिसका दूसरा संस्करण 2009 में “पहाड़” संस्था ने प्रकाशित किया ।

इसके बाद गिर्दा कुमाऊनी और हिंदी में लगातार कविताएं लिखते रहे ।

उन्होंने अनेक गीतों और कविताओं की धुनें भी तैयार की ।
अंधा युग , अंधेर नगरी चौपट राजा , नगाड़े खामोश है , धनुष यज्ञ जैसे अनेक नाटकों का उन्होंने निर्देशन भी किया ।

जिनमें से नगाड़े खामोश है और धनुष यज्ञ जैसे कुछ नाटक उन्होंने स्वयं लिखे थे  ।

इसी बीच उत्तराखंड में जंगलों के अंधाधुंध कटान के खिलाफ चिपको आंदोलन 1974 में और जंगलात की लकड़ियों की नीलामी के विरोध में 1977 में जन आंदोलन शुरू हो चुके थे ।

1977 के आंदोलन में गिरिदा एक जन कवि के रूप में कूद पड़े । नीलामी  का विरोध करने वाले युवाओ को गिर्दा के इन शब्दों , “आज हिमाल तुमन कैं धत्युच , जागौ – जागौ हो मेरा लाल” ने अपार शक्ति और ऊर्जा प्रदान की ।

अपने गीतों से 1984 के “नशा नहीं , रोजगार दो” और 1974 में उत्तराखंड आंदोलन को उन्होंने नए तेवर और ताकत दी ।

लोक गायक झुसिया दमाई पर उन्होंने महत्वपूर्ण शोध प्रबंध लिखा  , जिसको काफी ख्याति मिली ।

हमारी कविता के आखर , शिखरों के स्वर व रंग डारी दियो हो  अल्बेनियन ( कुमाऊनी होली गीत ) इनकी प्रमुख रचनाएं है ।

22 अगस्त 2010 को हल्द्वानी में इनका निधन हो गया ।

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