प्रख्यात संपादक श्री डबराल जी का जन्म 16 मई 1948 में टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड के काफलपानी गाँव में हुआ था ।

इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई।

ये भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे।

इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की।

सन् 1983 में जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद सँभाला।

कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद वह नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े रहे।

मंगलेश डबराल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हैं- पहाड़ पर लालटहैं , घर का रास्ता, हम जो देखते हैं , आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु

इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हो चुके हैं।

दिल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान,

कुमार विकल स्मृति पुरस्कार

और अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना हम जो देखते हैं के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सन् २००० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित ।

मंगलेश डबराल की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।

मंगलेश की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ़्राँसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।

कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते हैं।

मंगलेश की कविताओं में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छलछद्म दोनों का प्रतिकार है।
वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं अपितु प्रतिपक्ष में एक सुन्दर स्वप्न रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी

कोरोना से संक्रमित होने के कारण 9 दिसम्बर 2020 को वसुंधरा, गाजियाबाद के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *